Jagjit Singh
हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
मोहब्बत में नहीं हैं फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले
डरे क्यों मेरा क़ातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पर
वो खून, जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले
निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन
बहुत बेआबरू होकर तेरे कुचे से हम निकले
हुई जिनसे तवक्को खस्तगी की दाद पाने की
वो हमसे भी ज्यादा ख़स्त-ए-तेघ-ए-सितम निकले
खुदा के वास्ते परदा ना काबे से उठा ज़ालिम
कहीं ऐसा ना हो याँ भी वही काफ़िर सनम निकले
कहाँ मयखाने का दरवाज़ा ‘ग़ालिब’ और कहाँ वाइज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था के हम निकले
C. H. Atma
Lata Mangeshkar
Ustaad Shujaat Hussain Khan
Abida Parveen
Shubha Mudgal
Fariha Pervez
~O~